नियम है तो सौ ग्राम भी बहुत भारी है

If there is a rule, then even 100 grams is very heavy

नियम है तो सौ ग्राम भी बहुत भारी है

जहां भी नियम है,जैसा भी नियम है, वह सबने मिलकर बनाया है, सबके लिए बनाया गया है, सबने सहमति दी है।सबने उसे ठीक माना है।सबने पालन करने की बात कही है तो उस नियम को इसलिए तो गलत नहीं माना जा सकता कि किसी ने उसका पालन नहीं किया और उसे व्यक्तिगत नुकसान के साथ देश को भी नुकसान हुआ है। ओलिंपक में ऐसा ही हुआ है। देश की जानी-मानी महिला पहलवान विनेश फोगाट को तय वजन से सौ ग्राम वजन ज्यादा होने से अयोग्य घोषित कर दिया है। यह फैसला बनाए गए नियम के अनुसार किया गया है, इसलिए इसे गलत तो नहीं कहा जा सकता। इससे विनेश फोगाट ने जीवन भर जो सपना देखा था ओलिंपिक में पदक जीतने का, वह अधूरा रह गया। इससे करोड़ो भारतीयों को भी बुरा लगा है कि हमारी वह महिला पहलवान जो सिल्वर नहीं तो गोल्ड मेडल जीतती, वह पदक से ही वंचित रह गई है।

इसमें कोई शक नहीं है कि विनेश ने पेरिस ओलिंपिक में पदक जीतने लायक प्रदर्शन किया था, विश्व के चैंपियन महिला पहलवानों के हराया और फाइनल तक पहुंची थी। फाइनल के ठीक पहले किए गए वजन मे उसका वजन मात्र सौ ग्राम ज्यादा पाया गया और उसे फाइनल खेलने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इससे विनेश फोगाट को जितना दुख हुआ है, जितना बड़ा झटका लगा है, उससे ज्यादा दुख व बड़ा झटका देश के लोगों को भी लगा है। पीएम मोदी,अमित शाह,जेपी नड्डा, एम.खरगे,राहुल गांधी,सभी बड़े खिलाडियों ने विनेश फोगाट के प्रदर्शन की सराहना की है। कहा है कि तुमने पदक नही जीता तो क्या हुआ. तुमने भारत का दिल जीता है।


देश में हर मामले मे राजनीति होती है तो विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित कर देने के मामले में हुई।खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने संसद में कहा कि विनेश फोेगाट को अयोग्य ठहराने के बाद भारत की तरफ से जो कुछ किया जा सकता है, किया गया है.उन्होंने बताया कि फोगाट को सरकार ने हर वह सुविधा मुहैया कराई जो जरूरी थी।खेल मंत्री बयान से असंतुष्ट विपक्ष ने महिला पहलवान के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाकर दोनो सदनों से वाकआउट किया। इससे साफ है कि आने वाले दिनो में इस मुददे पर राजनीति होगी। 


सबको पता है कि विनेश का फाइनल खेलना तब ही संभव होगा जब वह अपना वजन उतना ही रखेंगी जितना होना चाहिए। इसके बाद भी उनका वजन सौ ग्राम ज्यादा हो गया तो इसके लिए किसको दोषी माना जाना चाहिए। क्योंकि यह तो सामूहिक जिम्मेदारी थी। विनेश की भी  जिम्मेदारी थी और सपोर्ट स्टाफ की भी जिम्मेदारी थी। ऐसा भी नहीं है कि सभी ने कोशिश नहीं की लेकिन उसके बाद भी सौ ग्राम ज्यादा रह जाना यह निश्चित रूप से दुभार्ग्य की बात ही कही जा सकती है।


ओलिंपिक में सिल्वर व गोल्ड मेडल मिलना बहुत बड़ी बात होती है। खासकर भारतीय खिलाडि़यों के लिए। इसके पीछे बरसों की मेहनत होती है।वही मेहनत जरा सी चूक से बेकार हो जाती है जब भारतीय खिलाड़ी किसी भी वजह से पहले तीन में नहीं आ पाते हैं। ओलिंपिक में पहले दस स्थान में आना भी खिलाडि़यों के लिए गर्व की बात होती है लेकिन पहले तीन स्थानों पर आने पर पदक मिलता है, इसलिए पहले दस स्थानों पर आने वालों को कोई याद नहीं करता है, पहले तीन स्थानों पर आने वाले को याद रखा जाता है। इतिहास में इन्हीं लोगों को याद किया जाता है, याद रखा जाता है। बहुत से भारतीय खिलाड़़यों ने इस पेरिस ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन किया है लेकिन जिन खिलाड़ियों पदक जीता है, उन्हें ही सबसे ज्यादा सराहा जाएगा। उनको पलकों पर बिठाया जाएगा।


मनु भाकर का भारत में शानदार स्वागत किया गया है तो इसलिए की ऐन वक्त पर वह दूसरे खिलाड़यों की तरह अपना सर्वश्रेष्ठ देने से चूक नहीं गई। हर बड़ी प्रतियोगिता में जीतता वही है, जो हर हाल में जीतने की पूरी तैयारी करके जाता है।तैयारी तो नीरज चोपड़ा की तरह होनी चाहिए। हार की कहीं कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। पहले प्रदर्शन से ही साफ हो जाए सारे खिलाड़ियों को कि इसको हराना मुमकिन नहीं है। जीतेगा तो यही  जीतेगा, क्योंकि यह जीतने के लिए पूरी तैयारी करके आया है। ओलिंपिक में गोल्ड जीतने का मतलब होता है कि खिलाड़ी पूरी तैयारी करके आया था। जिन लोगों ने सिल्वर व ब्रांज जीता है, वह भी तैयारी करके आए थे लेकिन ऐन वक्त पर जरा सा चूक गए। विनेश फोगाट का नाम भी अब इन्हीं ऐन वक्त पर चूकने वाले खिलाड़़ियों में लिया जाएगा।