कच्चे तेल के दाम में लगी आग, इस साल पहली बार 94 डॉलर प्रति बैरल के पार
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रूस के साथ सऊदी अरब की अगुवाई वाले ओपेक प्लस द्वारा दिसंबर के अंत तक वैश्विक बाजार में आपूर्ति में 10 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती जारी रखने का निर्णय लेने के बाद ब्रेंट क्रूड की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है। रूस ने भी हाल के महीनों में अपने निर्यात में स्वैच्छिक कटौती की है। इससे ब्रेंट क्रूड इस साल पहली बार 94 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया है। ब्रेंट क्रूड का नवंबर वायदा 94.15 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। वहीं, डब्ल्यूटीआई क्रूड का अक्टूबर वायदा 90.77 डॉलर प्रति बैरल हो गया है।
कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का कारण क्या है?
कारण नंबर एक: इस महीने की शुरुआत में, तेल उत्पादक सऊदी अरब और रूस ने संयुक्त रूप से प्रति दिन 1.3 मिलियन बैरल (बीपीडी) की अपनी स्वैच्छिक तेल उत्पादन कटौती को वर्ष के अंत तक बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में तेज वृद्धि हुई, जो 10 महीने के शिखर तक पहुंच गई।
कारण नंबर दो: ओपेक 2023 और 2024 में वैश्विक तेल मांग में मजबूत वृद्धि के अपने पूर्वानुमान पर कायम है। उत्पादक समूह को उम्मीद है कि 2023 में 2.44 मिलियन बीपीडी की वृद्धि की तुलना में 2024 में विश्व तेल की मांग 2.25 मिलियन बीपीडी बढ़ जाएगी।
कारण नंबर तीन: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने कहा कि ओपेक+ द्वारा आपूर्ति में कटौती को 2023 के अंत तक बढ़ाने से चौथी तिमाही के दौरान पर्याप्त बाजार घाटा हो जाएगा, जो इस साल और अगले साल मांग वृद्धि के अनुमान पर कायम रहेगा।
कारण नंबर चार: अमेरिका और चीन शीर्ष दो तेल उपभोक्ताओं में मांग मजबूत बनी हुई है, जबकि ओपेक लीडर सऊदी अरब और रूस ने आपूर्ति सीमित कर दी है। यह रैली तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बढ़ावा है, हालांकि, यह दुनिया भर में उभरती अर्थव्यवस्थाओं और केंद्रीय बैंकों पर सीधा दबाव डालती है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं।
फंसे लाभ से रूसी तेल खरीदने का विकल्प तलाश रही कंपनियां
भारतीय पेट्रोलियम कंपनियां रूस में फंसे 60 करोड़ डॉलर के अपने लाभांश से उस देश (रूस) से ही कच्चा तेल खरीदने की संभावनाएं तलाश रही हैं। अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। भारत की शीर्ष चार पेट्रोलियम कंपनियों- इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड की एक इकाई, ऑयल इंडिया लिमिटेड और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड रूसी तेल और गैस क्षेत्रों में अपने निवेश से अर्जित लाभांश आय को नहीं ला सकी हैं। वह पैसा रूस में उनके बैंक खातों में पड़ा हुआ है, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के कारण इस राशि को भारत नहीं लाया जा सका है।
कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा भारत
भारत के लिए रूस इस समय कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। भारत की कच्चे तेल की कुल खरीद में रूस की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से अधिक है। अधिकारियों ने कहा कि एक विकल्प यह है कि रूसी बैंकों के खातों में पड़े पैसे को कच्चा तेल खरीदने वाली कंपनियों को ऋण के रूप में दिया जा सकता है। ये इकाइयां भारत में ऋण चुका सकती हैं। रूस से कच्चा तेल खरीदने वाली कंपनियों में आईओसी और बीपीसीएल भी शामिल हैं।
एक अधिकारी ने कहा, हम इस कदम को लेकर कानूनी और वित्तीय प्रावधान देख रहे हैं। हम प्रतिबंधों के प्रति सचेत हैं और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते जिससे किसी भी तरह के उल्लंघन का मामला बनता हो। भारत की सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों ने रूस में चार अलग-अलग संपत्तियों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए 5.46 अरब डॉलर का निवेश किया है। इनमें वेंकोरनेफ्ट तेल और गैस क्षेत्र में 49.9 प्रतिशत हिस्सेदारी और टीएएएस-यूर्याख नेफ्टेगाज़ोडोबाइचा क्षेत्रों में 29.9 प्रतिशत हिस्सेदारी शामिल है। उन्हें इन क्षेत्रों को परिचालन करने वाले गठजोड़ को तेल और गैस की बिक्री से हुए मुनाफे में हिस्सा मिलता है।